कोरोना की दूसरी लहर से गांवों की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हुई है। राज्यों द्वारा संक्रमण रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन और नाइट कर्फ्यू से ग्रामीण व्यवसाय और रोजगार को भारी नुकसान हुआ है। इसके चलते बहुसंख्यक ग्रामीण आबादी कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं है। इससे लोन चूक के मामले तेजी से बढ़ सकते हैं। इंडिया रेटिंग्स की रिपोर्ट से यह जानकारी मिली है।
रिपोर्ट के अनुसार, इस साल ग्रामीण क्षेत्रों में लोन डिफॉल्टर के मामले बढ़ने की आशंका है। मांग प्रभावित होने से पूरे साल बैंकों के समाने कर्ज उगाही को लेकर संकट की स्थिति बनी रहने वाली है। इस बात की तस्दीक अप्रैल महीने में लोन की ईएमआई नहीं चूकाने वालों से हुई है। इनकी संख्या तेजी से बढ़ी है। ऐसी आशंका है कि मई महीने के लोन पूल संग्रह (जून भुगतान) में भी गिरावट आएगी। रेटिंग एजेंसी द्वारा मूल्यांकन किए गए सभी लेन-देन में यह देखा गया कि अप्रैल में लोन संग्रह घटकर 73 प्रतिशत हो गया, जबकि पिछले महीने यह 84 प्रतिशत था। गौरतलब है कि मार्च, अप्रैल और मई के माध्य में तेजी से फैले दूसरी लहर में बहुत सारे कलेक्शन एजेंट, बैंक कर्मचारियों और उधारकर्ताओं के बीमार होने के बाद कई बैंकों को डोर-टू-डोर संग्रह रोकने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
ऑटो डेबिट लेन-देन में बढ़ा बाउंस
कोरोना की दूसरी लहर के कारण अप्रैल के बाद मई में लगातार दूसरे महीने ऑटो डेबिट भुगतान के बाउंस होने के मामले बढ़े हैं। यह इस बात का संकेत है कि आर्थिक गतिविधियों में रुकावट के कारण लोगों पर वित्तीय दबाव बढ़ा है। नेशनल ऑटोमेटेड क्लियरिंग हाउस (एनएसीएच) के डेटा के मुताबिक मई में 8.57 हुए करोड़ लेनदेन में से 35.91 फीसदी या 3.08 करोड़ लेनदेन असफल रहे। अप्रैल में 8.54 करोड़ ऑटो डेबिट लेनदेन हुए थे जिनमें से 5.63 करोड़ सफल रहे थे जबकि 2.908 करोड़ असफल हो गए थे। इस प्रकार उस महीने असफल लेनदेन की संख्या 34.05 फीसदी रही थी। ऑटो डेबिट लेनदेन के असफल होने के मामलों का उच्चतम स्तर पिछले वर्ष जून में देखा गया था जब असफल मामलों की दर 45 फीसदी से ऊपर चली गई थी
दिसंबर से मार्च तक हुआ था सुधार
मार्च में जब दूसरी लहर की शुरुआत हुई थी तब कुल लेनदेन के मुकाबले ऑटो डेबिट लेनदेन के बाउंस होने का प्रतिशत कम रहा था। उस महीने केवल 32.7 फीसदी ऑटो-डेबिट भुगतान लेनदेन असफल रहे थे। वहीं, दिसंबर से ही असफल होने वाले ऑटो डेबिट अनुरोधों का प्रतिशत लगातार कम हो रहा था और यह 40 फीसदी से नीचे रहा था जिससे उपभोक्ताओं द्वारा मासिक किस्त (ईएमआई), उपयोगिता और बीमा प्रीमियम के भुगतानों में उच्च नियमितता के संकेत मिलते हैं।
कंपनियों ने कर्ज लेने से हाथ खींचा
कोरोना संकट के बीच कंपनियों ने मांग के अभाव में निवेश से हाथ खींच लिया है। इसके कारण कंपनियों ने 1.70 लाख करोड़ रुपये के लोन में कटौती की है। कटौती करने वाली कंपनियां तेल, इस्पात, उर्वरक और सीमेंट क्षेत्र से शामिल हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार 1,000 से अधिक सूचीबद्ध संस्थाओं में से शीर्ष 15 क्षेत्रों ने 1.70 की ऋण कमी की है। रिपोर्ट के अनुसार, नए निवेश के लिए कॉर्पोरेट की इच्छा वर्तमान में नहीं है क्योंकि अर्थव्यवस्था अभी भी दूसरी लहर से उबर रही है। नई निवेश घोषणाओं के अनुसार निवेश परिदृश्य सुस्त है, जिसमें सीएमआईई के अनुसार वित्त वर्ष 2021 में 67% की गिरावट आई है। कंपनियां पूंजी बाजार से कम वित्त लागत की सुविधा के लिए ब्याज दरों की कम अवधि की संरचना का लाभ उठा रही हैं और अपनी ऋण देनदारियों को कम कर रही हैं। साथ ही, शीर्ष 1,000 कंपनियों ने मार्च 2020 की तुलना में इस साल मार्च में अपनी नकदी और बैंक बैलेंस में लगभग 35% की वृद्धि की है।