CTN PRESS

CTN PRESS

NEWS & BLOGS EXCLUCIVELY FOR INFORMATION TO ENGINEERS & VALUERS COMMUNITY

Explainer: what is the difference between repo rate and MCLR linked loans | Explainer: Repo Rate या MCLR? किस बेंचमार्क पर Home Loan लेना है फायदेमंद, समझिए क्या है दोनों के बीच अंतर

नई दिल्ली: MCLR Vs Repo Rate Based Lending: एक समय था जब लोन लेने वाले ग्राहकों (Borrowers) की ये शिकायत रहती थी कि उन्हें ये समझ नहीं आता कि बैंक किस आधार पर लोन की ब्याज दरें तय करते हैं. क्योंकि जब रिजर्व बैंक (RBI) रेपो रेट (Repo Rate) में बढ़ोतरी करता है तो बैंक तुरंत ब्याज दरें बढ़ा देते हैं, लेकिन जब रेपो रेट में कटौती होती है तो बैंक ब्याज दरें घटाने में कोई उत्साह नहीं दिखाते.

ऐसा नहीं है कि रिजर्व बैंक को ग्राहकों की ये परेशानी पता नहीं थी, उसे हमेशा से पता थी और रिजर्व बैंक ने इसे ठीक करने की कई कोशिशें भी कीं. बैंक जिस आधार पर ब्याज दरें तय करते हैं उस बेंचमार्क रेट को पारदर्शी बनाने के लिए कई कदम भी उठाए. बेंचमार्क का मतलब होता है कि बैंक इससे नीचे दर पर कोई लोन नहीं दे सकते हैं.

ये भी पढ़ें- RBI Credit Policy: RBI ने ब्याज दरों में छठी बार नहीं किया बदलाव, FY22 के लिए GDP अनुमान घटाकर 9.5%

सबसे पहले बैंक ब्याज दरें तय करने के लिए प्राइम लेंडिंग रेट (PLR) का इस्तेमाल करते थे, इसके बाद Base Rate आया फिर साल 2016 में मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट (MCLR) को लागू किया गया, माना ये गया कि MCLR काफी हद तक पारदर्शी है, लेकिन जब ये सभी ग्राहकों को राहत पहुंचाने में नाकाम रहे तो RBI ने एक्सटर्नल बेंचमार्क बेस्ड लेंडिंग रेट को लागू किया.

यहां ‘External’ शब्द पर ध्यान दीजिए, क्योंकि समझने वाली बात ये बैंक अबतक जिन बेंचमार्क का इस्तेमाल कर रहे थे वो सभी बैंकों के ‘Internal’ बेंचमार्क थे, जिसका इस्तेमाल ब्याज दरों को तय करने में बैंक करते, और ये सिस्टम बेहद अपारदर्शी था. खैर, जब रिजर्व बैंक ने एक्सटर्नल बेंचमार्क बेस्ड लेंडिंग  रेट सिस्टम को लागू किया तो सभी बैंकों से कहा कि वो अपने फ्लोटिंग रेट लोन को इस एक्टर्नल बेंचमार्क से लिंक करें. RBI के इस आदेश के बाद सभी बैंकों ने अपने फ्लोटिंग रेट को इस नए बेंचमार्क से लिंक भी कर लिया.

जब रिजर्व बैंक ने एक्सटर्नल बेंचमार्क बेस्ड लेंडिंग रेट्स की शुरुआत की तो उसने बैंकों को इसके लिए कुछ विकल्प भी दिए, जिसके आधार पर वो अपना एक्सटर्नल बेंचमार्क को चुन सकें. RBI ने रेपो रेट, 3 महीने का ट्रेजरी बिल और 6 महीने का ट्रेजरी बिल को एक्सटर्नल बेंचमार्क बनाने का विकल्प दिया, करीब करीब सभी बैंकों ने रेपो रेट को ही एक्सटर्नल बेंचमार्क माना. जिसे रेपो लिंक्ड लेंडिंग रेट (RLLR) कहते हैं.

बेंचमार्क के पुराने सिस्टम में बैंक पुराने ग्राहकों के साथ काफी भेदभाव भी करते थे, जैसे- नए ग्राहकों को तो बैंक सस्ती ब्याज दरों पर लोन देते थे, लेकिन पुराने ग्राहकों को ब्याज दरों में कटौती का फायदा नहीं दिया जाता था. RBI चाहता था कि जब वो रेपो रेट घटाए तो इसका फायदा तुरंत और सभी ग्राहकों को मिलना चाहिए. इस मायने में रिजर्व बैंक का एक्सटर्नल बेंचमार्क सिस्टम अबतक तो काफी कारगर साबित हुआ है. इस नए सिस्टम ने अबतक चली आ रही अपारदर्शी परंपरा को तोड़ दिया, अब ब्याज दरों में कटौती का फायदा नए और पुराने दोनों तरह के लोन ग्राहकों को मिलने लगा.

एक्सपर्ट्स सलाह देते हैं कि अगर आपका फ्लोटिंग लोन पुराने बेंचमार्क पर है तो उसे नए एक्सटर्नल बेंचमार्क पर शिफ्ट करने में फायदा है. ऐसा करने पर हो सकता है कि आपकी EMI कम हो जाए क्योंकि रेपो लिंक्ड रेट कम होगा, साथ ही आपको RBI जब जब दरों में कटौती करेगा या बढ़ोतरी करेगा आपकी EMI में ये दिखेगा, यानी एक पारदर्शिता भी रहेगी.

ये भी पढ़ें- Bank Privatisation: इस साल दो सरकारी बैंकों का होगा निजीकरण, Niti Aayog ने सौंप दी अपनी फाइनल लिस्ट

Source link

FOR ALL UPDATES IN EMPANELMENTS & OTHER UPDATED

GET ALL RELATED NEWS UPDATES IMMEDIATELY BY JOINING THE SOCIAL MEDIA PLATFORMS OF CEV GROP BY CLICKING THE LINK PROVIDED AT THE BOTTOM

JOIN SOCIAL MEDIA PLATFORMS OF CEV INDIA FOR ALL UPDATES RELATED TO THE PROFESSION

FACEBOOK PAGE CEV INDIA,                 TELEGRAM GROUP,                           YOUTUBE CHANNEL

Disclaimer :

We take all possible care for accurate & authentic news/empanelment/tender information, however, Users are requested to refer Original source of the Notice / Tender Document published by the Issuing Agency before taking any call regarding this tender.

error: Content is protected !!
Scroll to Top