SUPREME COURT CRITICIZES POLICE ACTION ON PROPERTY POSSESSION WITHOUT LEGAL SANCTION, SETS ASIDE BAIL CONDITIONS
By [Er. Sundeep Bnasal]
NEW DELHI: In a significant ruling, the Supreme Court of India condemned the police’s actions in taking possession of immovable property without legal sanction, describing it as an act of “total lawlessness.” The Court also struck down certain bail conditions imposed by the High Court, which were seen as overstepping legal boundaries and prejudicing ongoing civil disputes.
The bench, consisting of Justice C.T. Ravikumar and Justice Sandeep Mehta, expressed disapproval over the police’s conduct in taking the keys of a disputed property under an application filed by a litigant. The Court emphasized that such actions were not supported by any provision of law, and under no circumstances could the police be allowed to interfere with the possession of immovable property without proper legal authorization.
The Case and the Controversial Bail Conditions
The case involved appellants/accused, Ramratan and another individual, who were alleged to have committed criminal trespass by entering the complainant’s house and constructing a wall to seal off the entry. In the course of the trial, the Madhya Pradesh High Court granted bail to the accused but imposed two conditions that sparked controversy.
The first condition required the accused to bear the cost of demolishing the wall they had built. The second condition directed the police to hand over the keys of the property to the complainants after the demolition was completed. The latter condition was contested by the State, which pointed out that a civil suit was pending between the complainant and the State regarding ownership and title of the property. The State argued that the High Court’s order to hand over possession of the property could unfairly prejudice the civil rights of the parties involved in the ongoing dispute.
Supreme Court’s Verdict
In its ruling, the Supreme Court set aside both bail conditions, criticizing the High Court for exceeding its jurisdiction under Section 439 of the Criminal Procedure Code (Cr.P.C.). The Court observed that the High Court had imposed onerous and unreasonable conditions that were not connected to the purpose of granting bail.
The bench emphasized that courts must exercise discretion in imposing bail conditions, ensuring that they are aligned with facilitating the administration of justice, securing the accused’s presence during trial, and preventing the misuse of liberty to obstruct the investigation. The imposition of conditions that could result in deprivation of civil rights was deemed impermissible by the Supreme Court.
The Court also remarked that the police’s act of taking possession of the property and handing it over to one party was a violation of the principle that no individual, including the police, should interfere in civil disputes without proper legal authorization.
Significance of the Ruling
This ruling highlights the importance of maintaining the separation between criminal and civil law, as well as the need to respect ongoing civil disputes while dealing with criminal matters. The Supreme Court’s decision reinforces the principle that any interference with property rights must be based on legal sanction and due process, and that courts must be cautious in imposing conditions that affect the civil rights of individuals.
By setting aside the bail conditions and condemning the police’s actions, the Supreme Court has reiterated the need for a fair and lawful approach to both criminal and civil proceedings, protecting the rights of individuals involved in legal disputes.
Case Title: Ramratan @ Ramswaroop & Anr. Versus The State of Madhya Pradesh
This judgment serves as a critical reminder that justice must be administered impartially and in accordance with the law, ensuring that all parties’ rights are respected throughout the legal process.
सुप्रीम कोर्ट ने कानून की मंजूरी के बिना अचल संपत्ति पर कब्ज़ा करने की पुलिस की कार्रवाई को बताया कानूनविहीन
लेखक: [ई. संदीप बंसल]
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसले में पुलिस की उस कार्रवाई को अस्वीकार कर दिया, जिसमें एक वादी के आवेदन पर पुलिस ने अचल संपत्ति की चाबियाँ लेकर संपत्ति पर कब्ज़ा कर लिया था। कोर्ट ने इसे कानूनविहीनता करार देते हुए कहा कि ऐसी कार्रवाई का कोई कानूनी आधार नहीं है और इसे किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने इस संबंध में टिप्पणी करते हुए कहा, “हमारा मानना है कि अचल संपत्ति पर कब्ज़ा करने की पुलिस की यह कार्रवाई पूरी तरह से कानूनविहीनता को दर्शाती है। किसी भी परिस्थिति में पुलिस को अचल संपत्ति के कब्ज़े में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि ऐसी कार्रवाई किसी भी कानून द्वारा स्वीकृत नहीं है।”
सिविल विवाद में हस्तक्षेप की आलोचना
इस मामले में अपीलकर्ता/आरोपियों पर शिकायतकर्ता के घर में आपराधिक अतिक्रमण करने और दीवार बनाकर शिकायतकर्ता के प्रवेश को अवरुद्ध करने का आरोप था। उच्च न्यायालय ने आरोपियों को जमानत देते हुए यह शर्त रखी कि पुलिस आरोपी के खर्च पर दीवार को गिराएगी और फिर संपत्ति की चाबियाँ शिकायतकर्ताओं को सौंप देगी।
राज्य ने उच्च न्यायालय द्वारा लगाए गए इस आदेश का विरोध किया, यह कहते हुए कि शिकायतकर्ता और राज्य के बीच एक सिविल मुकदमा चल रहा है जिसमें राज्य ने संपत्ति के शीर्षक की घोषणा और स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की है। राज्य का कहना था कि उच्च न्यायालय को इस सिविल विवाद में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए था, क्योंकि विवादित संपत्ति का कब्ज़ा शिकायतकर्ता को सौंपने से पक्षों के नागरिक अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय द्वारा लगाए गए जमानत शर्तों को खारिज कर दिया और कहा कि उच्च न्यायालय ने सीआरपीसी की धारा 439 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया है। कोर्ट ने माना कि उच्च न्यायालय ने जमानत देने से असंबंधित, अनुचित और भारी शर्तें लगाई थीं, जिनका उद्देश्य केवल अभियुक्त पर दबाव डालना था, न कि न्याय प्रशासन को सुविधाजनक बनाना।
कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा, “न्यायालय का विवेक शर्तें लगाने में न्याय प्रशासन को सुविधाजनक बनाने, अभियुक्त की उपस्थिति सुनिश्चित करने और न्याय में कोई भी विघ्न उत्पन्न होने से बचाने के लिए होना चाहिए। कोई भी ऐसी शर्तें लगाना जो नागरिक अधिकारों से वंचित करने के समान हो, अस्वीकार्य है।”
कानूनी दृष्टिकोण
इस फैसले ने स्पष्ट रूप से यह संदेश दिया कि न्यायालयों को अपने अधिकार क्षेत्र का सम्मान करना चाहिए और सिविल मामलों में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए, विशेष रूप से जब वे किसी विवादित संपत्ति से संबंधित होते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि पुलिस को किसी भी संपत्ति पर कब्ज़ा करने का अधिकार तब तक नहीं है जब तक कि इसके लिए कानूनी आदेश न हो।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने जमानत और सिविल विवादों के संदर्भ में कानून की भूमिका को स्पष्ट किया है। कोर्ट ने पुलिस की गैरकानूनी कार्रवाई और उच्च न्यायालय द्वारा लगाए गए कठोर जमानत शर्तों पर गंभीर आपत्ति जताई है, जो नागरिक अधिकारों के उल्लंघन के समान हो सकती थीं। इस फैसले से यह सिद्ध हुआ है कि न्यायालयों को अपनी शक्तियों का प्रयोग पूरी कानूनी प्रक्रिया के तहत और किसी भी पक्ष के अधिकारों का उल्लंघन किए बिना करना चाहिए।
केस का शीर्षक:
रामरतन @ रामस्वरूप और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य