अक्सर देखा गया है कि बचपन से युवा अवस्था तक पढ़ने में काफी तेज-तर्रार होने के बावजूद कुछ युवा करियर को लेकर भटक जाते हैं। इसका एक अहम कारण यह है कि उन्हें यह नहीं पता होता हैं कि आखिर उसकी खूबियां क्या हैं? उसने जो पढ़ाई की है, उसी क्षेत्र में करियर बनाए या फिर अपनी क्षमता यानी स्किल का आकलन करे। हमारी शिक्षा पद्धति भी इस मामले में काफी कमजोर है। किताबी ज्ञान तो दे दी जाती है, लेकिन बच्चों के हुनर के बारे में कभी बात नहीं की जाती है। ग्रामीण और कस्बाई इलाकों के सरकारी और गैरसरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को अक्सर बड़ा होकर इन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
रॉनी स्क्रूवाला ने अपनी किताब ‘स्किल इट, किल इट’ इन्हीं विषयों पर विस्तार से चर्चा की है। इसके लिए उन्होंने उद्योग जगत के कई मशहूर बिजनेसमैन के साथ उनकी वार्ता को उदाहरण के तौर पर पेश किया है। आपको बता दें कि इस किताब का हिंदी अनुवाद (आपकी स्किल, आपकी उड़ान) प्रभात रंजन के द्वारा पेंगुइन रैंडम हाउस के हिंद पॉकेट बुक्स इम्प्रिंट के तहत किया गया है।।
रॉनी का मानना है कि महज डिग्री हासिल करना ही काफी नहीं है। आपको अपने सॉफ्ट स्किल की जानकारी होनी चाहिए। अगर आप ऐसा करने में सफल होते हैं तो दुनिया पर राज करने से आपको कोई रोक नहीं सकता है। उन्होंने कम्युनिकेशन को लेकर विस्तार से बात की है।
आपने देखा होगा कि कंपनियों के सीईओ और अपने-अपने फील्ड के लीडर सॉफ्ट स्किल को लेकर काफी चर्चा करते हैं। उन्हें आप अक्सर जॉब इंटरव्यू, प्रमोशन इंटरव्यू, अप्रेजल इत्यादि के समय सॉफ्ट स्किल के बारे में चर्चा करते हुए देखते होंगे। इसलिए हर इंसान को अपनी सॉफ्ट की पहचान करने पर काम करने की आवश्यकता है।
इस किताब में रॉनी स्क्रूवाला ने अपनी कई नाकामियों का जिक्र किया है। उन्होंने इसके बाद उनके जीवन में आई कामयाबियों के बारे में भी विस्तार से चर्चा की है। अगर आप अपने स्किल के जानकार होते हैं तो आप अपने जीवन के कई कीमती साल को बचाते हुए, बुलंदियों को छू सकते हैं।
रॉनी स्क्रूवाला एक निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार में पले-बढ़े व्यक्ति हैं, जिनकी पहली भाषा अंग्रेजी नहीं थी। हालांकि उन्हें अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल में पढ़ने का मौका जरूर मिला। गुजराती परिवार में जन्मे रॉनी के मां-पिता उन्हें भाषाई कौशल सीखने के लिए बचपन से ही क्लास भेजा करते थे। वे भाषाई कौशल के महत्व के बारे में अवगत थे। रॉनी ने धीरे-धीरे अपनी अंग्रेजी को ठीक किया। उन्होंने डिबेट, एलोक्यूशन क्लासेज़ और बाद में थिएटर में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। वे भाषण देने लगे। भाषण को रिकॉर्ड करने लगे। फिर रिकॉर्ड किए हुए भाषण को दोबारा सुनने लगे। इससे उन्हें अपनी कमजोरी के बारे में जानकारी खुद से मिलने लगी। उन्होंने उन कमजोरियों को दूर किया।
रॉनी का कहना है कि संवाद का कौशल जन्मजात नहीं होता, इसे ख़ुद से विकसित किया जाता है। इस विषय में उन्होंने हिंदुस्तान लिवर के सीएमडी संजीव मेहता की एक बात का जिक्र किया, जो कहते हैं, ‘हर आदमी जन्मजात वक्ता नहीं होता, लेकिन उसकी मेहनत उसे एक शानदार कम्युनिकेटर बना सकती है’।
‘आपकी स्किल, आपकी उड़ान’ एक प्रैक्टिकल किताब है। इसमें अपने-अपने क्षेत्रों के कई दिग्गजों के सुझावों को शामिल किया गया है। अगर आप अपने करियर को लेकर बेचैन हैं, या फिर निर्णय कर पाने में असमर्थ हैं तो आपके लिए यह किताब सहारा बन सकती है।
